पढि़ए प्रतिदिन : एक नया गीत

Monday, October 14, 2019

गीत 95

पुकारो पुकारो पुकारो मुझे
अपने स्निग्ध, शीतल, गहन
पवित्र अंधकार में ।

तुच्छ दिनों की क्लांति ग्लानि
जीवन को मिलाए धूल में
हर क्षण की सब बातों, मन के
सहस्र विकार में ।

मुक्त करो, हे मुक्त करो मुझे,
अपने निविड़, नीरव, उदार
अनंत अंधकार में ।

नीरव रात, खोकर आवाज’
बाह्य निगलता मेरा बाह्य,
दिखा दे मेरा अंतरतम
अखंड आकार में ।

Thursday, October 10, 2019

गीत 94

संग विश्व के करते जहाँ विहार
मेरा संग–साथ वहीं तुम्हारे ।

ना ही वन में, ना विजन में
ना ही मेरे अपने मन में
जहाँ तुम सबके अपने, हे प्रिय
ठीक वहीं, मेरे भी हो, तुम अपने ।
सबके लिए जहाँ तुम फैलाए बाँहें
वहीं से मेरा भी प्रेम जगे ।

प्रेम घर में छिप न सकता,
प्रकाश–सा है यह विखरता--
सबके तुम आनंद–धन, हे प्रिय,
वही आनंद हो मेरे ।