देवता जान दूरी बनाए रखूँ,
अपना समझ, न आदर जताऊँ ।
कह पिता, करूँ चरण–स्पर्श,
बंधु कह, दोनों हाथ पकड़ न पाऊँ ।
स्वयं ही तुम अति सहज प्रेम में
मेरे बनकर, आए यहाँ उतरकर
इसी सुख में छाती से लगाकर
संगी कह तुम्हें वर न पाऊँ ।
भाइयों में तुम भाई हो, प्रभु,
तभी मैं तुम्हारी ओर न तकता,
बाँट आया भाइयों में धन अपना
तुम्हारी मुट्ठी क्यों न भर पाऊँ ।
सबके सुख–दुख में हो शामिल
तुमसे मेरा क्या मुकाबला,
जान लगाता क्लांतिहीन कामों में
प्राण–सागर में कूद न पाऊँ ।
अपना समझ, न आदर जताऊँ ।
कह पिता, करूँ चरण–स्पर्श,
बंधु कह, दोनों हाथ पकड़ न पाऊँ ।
स्वयं ही तुम अति सहज प्रेम में
मेरे बनकर, आए यहाँ उतरकर
इसी सुख में छाती से लगाकर
संगी कह तुम्हें वर न पाऊँ ।
भाइयों में तुम भाई हो, प्रभु,
तभी मैं तुम्हारी ओर न तकता,
बाँट आया भाइयों में धन अपना
तुम्हारी मुट्ठी क्यों न भर पाऊँ ।
सबके सुख–दुख में हो शामिल
तुमसे मेरा क्या मुकाबला,
जान लगाता क्लांतिहीन कामों में
प्राण–सागर में कूद न पाऊँ ।
वाह सुंदर कविता सुंदर अनुवाद
ReplyDelete