संग विश्व के करते जहाँ विहार
मेरा संग–साथ वहीं तुम्हारे ।
ना ही वन में, ना विजन में
ना ही मेरे अपने मन में
जहाँ तुम सबके अपने, हे प्रिय
ठीक वहीं, मेरे भी हो, तुम अपने ।
सबके लिए जहाँ तुम फैलाए बाँहें
वहीं से मेरा भी प्रेम जगे ।
प्रेम घर में छिप न सकता,
प्रकाश–सा है यह विखरता--
सबके तुम आनंद–धन, हे प्रिय,
वही आनंद हो मेरे ।
मेरा संग–साथ वहीं तुम्हारे ।
ना ही वन में, ना विजन में
ना ही मेरे अपने मन में
जहाँ तुम सबके अपने, हे प्रिय
ठीक वहीं, मेरे भी हो, तुम अपने ।
सबके लिए जहाँ तुम फैलाए बाँहें
वहीं से मेरा भी प्रेम जगे ।
प्रेम घर में छिप न सकता,
प्रकाश–सा है यह विखरता--
सबके तुम आनंद–धन, हे प्रिय,
वही आनंद हो मेरे ।
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