पुकारो पुकारो पुकारो मुझे
अपने स्निग्ध, शीतल, गहन
पवित्र अंधकार में ।
तुच्छ दिनों की क्लांति ग्लानि
जीवन को मिलाए धूल में
हर क्षण की सब बातों, मन के
सहस्र विकार में ।
मुक्त करो, हे मुक्त करो मुझे,
अपने निविड़, नीरव, उदार
अनंत अंधकार में ।
नीरव रात, खोकर आवाज’
बाह्य निगलता मेरा बाह्य,
दिखा दे मेरा अंतरतम
अखंड आकार में ।
अपने स्निग्ध, शीतल, गहन
पवित्र अंधकार में ।
तुच्छ दिनों की क्लांति ग्लानि
जीवन को मिलाए धूल में
हर क्षण की सब बातों, मन के
सहस्र विकार में ।
मुक्त करो, हे मुक्त करो मुझे,
अपने निविड़, नीरव, उदार
अनंत अंधकार में ।
नीरव रात, खोकर आवाज’
बाह्य निगलता मेरा बाह्य,
दिखा दे मेरा अंतरतम
अखंड आकार में ।