पढि़ए प्रतिदिन : एक नया गीत

Monday, July 1, 2019

गीत 93 : तुमि जे काज करछो, आमाय

तुम करते जो काम, मुझे क्या
उसमें नहीं लगाओगे।
कार्य-दिवसों में, मुझे क्या तुम
अपने हाथों न जगाओगे?
अच्छे-बुरे, उत्थान-पतन में
दुनिया के संहार-सृजन में
जो संग तुम्हारे खड़ा हो पाऊँँ
तब क्या तुमसे जाना जाऊँँ।

सोचा था निर्जन छाया में
जहाँँ न न कोई आता-जाता
परिचय होगा उसी जगह पर
सांध्य-काल में मेरा-तेरा।
अंधकार में एकाकी
तुमसे मिलना मानोंं सपना
बुला लो मुझको अपने हाट 
खरीद-बिक्री होती जहाँ ।

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