पढि़ए प्रतिदिन : एक नया गीत

Friday, May 31, 2019

गीत 91 : एइ करेछो भालो, निठुर

यह अच्छा किया, ओ निष्ठुर,
यह अच्छा किया ।
ऐसा कर तुमने मेरा हृदय
प्रज्वलित किया ।
मुझ पर यह धूप न पड़े तो
कोई गंध नहीं बनती
मेरा यह दीप न जले तो
रोशनी नहीं फैलती ।

जब रहता अचेतन
यह चित्त मेरा
स्पर्श ही तो है पुरस्कार
तेरे आघात का ।
मोह–लाज के अंधकार में
न देख पाऊँ आँखों से तुझे
मेरे कलंक को आग लगा
वज्र–सा गढ़ो मुझे ।

Thursday, May 30, 2019

गीत 90 : आरो आघात सइबे आमार

और आघात सहेगा मेरा,
झेल भी लेगा मुझको
और कठिन सुर में झनकारो
जीवन के इन तारों को ।
जो राग जगाते मेरे प्राणों में
बजा न अब तक चरम तान में
निष्ठुर मूर्च्छना में है पड़ा वह
गान से मूरत को संचारो ।

बजे न उस पर केवल
कोमल करुणा
मृदु सुर से व्यर्थ करो न
इन प्राणों को ।
जल उठें सकल हुताश
गरज पड़ें सकल वातास
जगाकर सकल आकाश
पूर्णता का विस्तार करो ।

Tuesday, May 28, 2019

गीत 89 : आमार ए प्रेम नय तो भीरू

मेरा यह प्रेम न तो भीरू है,
न ही हीनबल,
क्या यह केवल व्याकुल होकर
गिराएगा अश्रुजल ।
मंद–मधुर सुख में शोभा में
प्रेम को क्यों नींद में डुबोए ।
तुम्हारे संग जागना वह चाहे
आनंद में पागल ।

नाचता जब भीषण वेश में
ताल के तीव्र स्वर गूँजते
भागता त्रस्त हो, लज्जित हो
संदेह में विह्वल ।
इसी प्रचंड मनोहर रूप में
मानों प्रेम मेरा वरण करे
क्षुद्र आशा का स्वर्ग उसका
जा पड़े रसातल ।

Monday, May 27, 2019

गीत 88 : चाइ गो आमि तोमारे चाइ

चाहती, मैं तुम्हीं को चाहती
तुम्हीं को चाहती मैं--
यह बात सदा है मन में
पर कह न पाती मैं ।
और जो कुछ वासना में
घूमता–फिरता रात–दिन
झूठ है वह, झूठ है सब, बस
तुम्हीं को चाहती मैं ।

जैसे रात छिपाए रखती
आलोक की प्रार्थना ही--
वैसे ही गहन मोहवश
तुम्हीं को चाहती मैं ।
झंझा जब भंग करती शांति
वह भी प्राणों में चाहे शांति,
वैसे ही तुम पर आघात कर भी
तुम्हीं को चाहती मैं ।

Friday, May 24, 2019

गीत 87 : छिन्न क'रे लओ हे मोरे

तोड़ लो मुझे तुम हे,
और न करो देर
झड़कर न धूल में मिल जाऊँ
यह भय मुझे दे टेर।
यह फूल तुम्हारी माला में
गूँथ पाएगा, यह नहीं जानता
पर शायद तुम्हारा आघात
हो उसका भाग्यलेख
तोड़ लो, तोड़ लो,
और न करो देर।

जाने कब दिन ढल जाएगा
अंधकार के साथ आएगा
जाने कब तुम्हारी पूजा–बेला
गुजर जाएगी अदेख।
जितना भी इसमें रंग भरा है
गंध–सुधा से हृदय भरा है
अपनी सेवा में वही स्वीकारो
जब तक है यह बेर
तोड़ लो, तोड़ लो,
और न करो देर।

Thursday, May 23, 2019

गीत 86 : आमारे यदि जागाले आजि, नाथ

जब आज जगाया मुझको नाथ,
लौटना मत तब, लौटना मत,
करो करुणा दृष्टिपात।
निबिड़ वन–शाखा के ऊपर
आषाढ़–मेघ, आँधी–पानी में,
बादल छाए, अलसाई–सी
सोई पड़ी है रात।
लौटना मत तब, लौटना मत,
करो करुणा दृष्टिपात।

अविराम बिजली की घात
नींद गँवाए प्राण
वर्षाजल–धारा के साथ
गाना चाहें गान।
हृदय मेरी आँखों के जल में
बाहर आकर तिमिर–तल में
व्याकुल हो खोजे आकाश
बढ़ाकर दोनों हाथ।
लौटना मत तब, लौटना मत,
करो करुणा दृष्टिपात।

Wednesday, May 22, 2019

गीत 85 : एका आमि फिरबो ना आर

एकाकी अब मैं नहीं लौटूँगा
ऐसे ही--
निज मन के कोने–कोने में
मोह के घर में ।
तुम्हें अकेले बाहुपाश में जकड़
घेरा छोटा करते पाया
केवल खद को ही है बाँधा
अपने बंधन में ।

जब मैं पाऊँगा तुमको
निखिल मध्य में
उसी क्षण हृदय में पाऊँगा
हृदय विराजे ।
यह चित्त मेरा वृंत केवल
उसके ऊपर विश्व–कमल
उसके ऊपर पूर्ण प्रकाश
दिखाओ मुझे ।

Tuesday, May 21, 2019

गीत 84 : आमार एकला घरेर आड़ाल भेङे

अपने एकाकी घर की दीवार तोड़
विशाल भवसागर
प्राण–रथ के सहारे
करूँगा पार कब ।
प्रबल प्रेम में सबके बीच
जुटा हुआ सबके कामों में
हाट–बाट में चलते–चलते
संग तुम्हारे होगा मिलन ।
प्राण–रथ के सहारे
करूँगा पार कब ।

निखिल आशा–आकांक्षा युक्त
दुख में, सुख में
झाँपी दे उसकी तरंगों को
रखूँ हृदय में ।
मंद–मधुर आघात–वेग में
हृदय तुम्हारा जाग उठेगा
सुनूँगा वाणी विश्वजन के
कलरव में ।
करूँगा पार कब 
प्राण–रथ के सहारे ।

Thursday, May 16, 2019

गीत 83 : कथा छिलो एक तरीते केवल तुमि आमि

बात हुई थी, एक नाव में केवल हम–तुम
जाएँगे यूँ ही केवल बस बहते–बहते,
त्रिभुवन में न जान पाएगा कोई
हम तीर्थगामी जा रहे किस देश में ।
कूल खोए उस समुद्र के बीच
सुनाकर गान केवल तुम्हारे कान में
लहार की भाँति भाषा–बंधन से मुक्त
मेरी वह रागिनी सुनोगे मौन मुस्कान में ।

आज भी समय मिला न उसे, काम रहा क्या बाकी  ।
देखो अब तो संध्या उतरे सागर तट पर ।
क्षीण प्रकाश में पंख पसारे सिंधु–पार के पाखी
लौट चुके वे सब भी अपने–अपने तट पर ।
काटने को बंधन सारे अब
तुम ही कहो, कब आओगे घाट,
सूर्यास्त की अंतिम आभा–सी
बहेगी नाव निरुद्देश सारी रात ।

Thursday, May 9, 2019

गीत 82 : एइ ज्योत्स्नाराते जागे आमार प्राण

इस ज्योत्स्नाभरी रात में जागे मेरे प्राण
जगह मिलेगी क्या आज तुम्हारे पास
देख पाऊँगा मुख वह अपूर्व
रहेगा सर्वदा हृदय उत्सुक
बार–बार चरणों के गिर्द
घूमेंगे मेरे अश्रुभरे गान ?

साहस कर तुम्हारे पद–मूल में
नहीं कर पा रहा ख़ुद को समर्पित
खड़ा हूँ नजरें गड़ाए माटी में
कहीं लौटा न दो यह मेरा दान ?
यदि तुम मेरा हाथ पकड़कर
पास आ, मुझे उठ जाने को बोलो
तभी प्राणों की असीम दरिद्रता का
इसी क्षण हो जाएगा अवसान ।

Tuesday, May 7, 2019

गीत 81 : तारा तोमार नामे बाटेर माझे

वे तुम्हारा नाम ले बीच राह में
पकड़ करते वसूल महसूल ।
देखती घाट पहुँच अंत में
रहती न पास एक भी कौड़ी ।
वे तुम्हारे नाम के बहाने
नष्ट कर रहे धन–प्राण,
मामूली भी जो कुछ मेरा
उसका भी करते वे हरण ।

आज मैंने पहचाना
उस छद्मवेशी दल को ।
उन्होंने भी जाना हाय
शक्तिहीन कह मुझको ।
गोपन वेश त्यागते ही
लज्जा–शरम अब कुछ भी नहीं
खड़ा है आज सिर उठाए
राह रोक कर ।

Monday, May 6, 2019

गीत 80 : तारा दिनेर बेला एसेछिलो

वे आए थे दिन में ही
मेरे घर में--
कहा था, पड़े रहेंगे
यहीं पास में ।
कहा था, भगवद्सेवा में
होंगे हम सहायक तुम्हारे
मिलेगा जो कुछ प्रसाद
लेंगे बाद पूजा के ।

इसी तरह दरिद्र क्षीण
मलिन वेश में
ससंकोच एक कोने में
आए, रहे वे ।
रात में देखा, प्रबल होकर
मेरे देवालय के पास
हरण करते पूजा की बलि
मलिन हाथ से ।

Friday, May 3, 2019

गीत 79 : धाय जेनो मोर सकल भालोबासा

दौड़े जैसे मेरा सारा प्यार–दुलार
प्रभु तुम्हारी ओर, तुम्हारी ओर, तुम्हारी ओर ।
जाए जैसे मेरी सारी गहरी आशा
प्रभु तुम्हारे कान में, कान में, तुम्हारे कान में ।

चित्त मेरा जब भी जहाँ रहता
तुम्हारी पुकार का रखता ध्यान
जितनी बाधाएँ, सब दूर हों मानों
प्रभु तुम्हारे मोह में, मोह में, तुम्हारे मोह में ।

बाहर है यह भिक्षा–भरी थाली
इस बार अंततः  रह जाए यह खाली
अंतर मेरा गोपन हो परिपूरित
प्रभु तुम्हारे दान से, दान से, तुम्हारे दान से ।

हे बंधु मेरे, हे अंतरतर
इस जीवन में जो कुछ सुंदर
सब आज बज उठें सुर में
प्रभु तुम्हारे गान में, गान में, तुम्हारे गान में ।

Thursday, May 2, 2019

गीत 78 : तुमि जखन गान गाहिते बल'

तुम कहते जब, गाओ गान
छाती मेरी हो उठती गर्वित,
छलक पड़तींं दोनों आँँखें मेरी
अनिमेष ताकतींं केवल तेरा मुख।
कठिन कटु जो कुछ मेरे प्राणों में
गलना चाहेंं अमृतमय गानों में,
सब साधना आराधना मेरी
पाखी-सा उड़ना चाहेंं सुखपूर्वक।

तृप्त हो तुम मेरे गीत-राग में
अच्छा लगता, तुमको लगता अच्छा
जानूँँ मैं इन्हीं गान के नाते
बैठ सका मैं तुम्हारे सम्मुख।

मन से जिसका छोर न पाता
गान से छूता उसके चरण
सुर की तंद्रा में भूल जाऊँँ खुद को
बंधु कह पुकार उठता प्रभु को।