यह अच्छा किया, ओ निष्ठुर,
यह अच्छा किया ।
ऐसा कर तुमने मेरा हृदय
प्रज्वलित किया ।
मुझ पर यह धूप न पड़े तो
कोई गंध नहीं बनती
मेरा यह दीप न जले तो
रोशनी नहीं फैलती ।
जब रहता अचेतन
यह चित्त मेरा
स्पर्श ही तो है पुरस्कार
तेरे आघात का ।
मोह–लाज के अंधकार में
न देख पाऊँ आँखों से तुझे
मेरे कलंक को आग लगा
वज्र–सा गढ़ो मुझे ।
यह अच्छा किया ।
ऐसा कर तुमने मेरा हृदय
प्रज्वलित किया ।
मुझ पर यह धूप न पड़े तो
कोई गंध नहीं बनती
मेरा यह दीप न जले तो
रोशनी नहीं फैलती ।
जब रहता अचेतन
यह चित्त मेरा
स्पर्श ही तो है पुरस्कार
तेरे आघात का ।
मोह–लाज के अंधकार में
न देख पाऊँ आँखों से तुझे
मेरे कलंक को आग लगा
वज्र–सा गढ़ो मुझे ।
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