पढि़ए प्रतिदिन : एक नया गीत

Tuesday, May 28, 2019

गीत 89 : आमार ए प्रेम नय तो भीरू

मेरा यह प्रेम न तो भीरू है,
न ही हीनबल,
क्या यह केवल व्याकुल होकर
गिराएगा अश्रुजल ।
मंद–मधुर सुख में शोभा में
प्रेम को क्यों नींद में डुबोए ।
तुम्हारे संग जागना वह चाहे
आनंद में पागल ।

नाचता जब भीषण वेश में
ताल के तीव्र स्वर गूँजते
भागता त्रस्त हो, लज्जित हो
संदेह में विह्वल ।
इसी प्रचंड मनोहर रूप में
मानों प्रेम मेरा वरण करे
क्षुद्र आशा का स्वर्ग उसका
जा पड़े रसातल ।

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