वे तुम्हारा नाम ले बीच राह में
पकड़ करते वसूल महसूल ।
देखती घाट पहुँच अंत में
रहती न पास एक भी कौड़ी ।
वे तुम्हारे नाम के बहाने
नष्ट कर रहे धन–प्राण,
मामूली भी जो कुछ मेरा
उसका भी करते वे हरण ।
आज मैंने पहचाना
उस छद्मवेशी दल को ।
उन्होंने भी जाना हाय
शक्तिहीन कह मुझको ।
गोपन वेश त्यागते ही
लज्जा–शरम अब कुछ भी नहीं
खड़ा है आज सिर उठाए
राह रोक कर ।
पकड़ करते वसूल महसूल ।
देखती घाट पहुँच अंत में
रहती न पास एक भी कौड़ी ।
वे तुम्हारे नाम के बहाने
नष्ट कर रहे धन–प्राण,
मामूली भी जो कुछ मेरा
उसका भी करते वे हरण ।
आज मैंने पहचाना
उस छद्मवेशी दल को ।
उन्होंने भी जाना हाय
शक्तिहीन कह मुझको ।
गोपन वेश त्यागते ही
लज्जा–शरम अब कुछ भी नहीं
खड़ा है आज सिर उठाए
राह रोक कर ।
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