और आघात सहेगा मेरा,
झेल भी लेगा मुझको
और कठिन सुर में झनकारो
जीवन के इन तारों को ।
जो राग जगाते मेरे प्राणों में
बजा न अब तक चरम तान में
निष्ठुर मूर्च्छना में है पड़ा वह
गान से मूरत को संचारो ।
बजे न उस पर केवल
कोमल करुणा
मृदु सुर से व्यर्थ करो न
इन प्राणों को ।
जल उठें सकल हुताश
गरज पड़ें सकल वातास
जगाकर सकल आकाश
पूर्णता का विस्तार करो ।
झेल भी लेगा मुझको
और कठिन सुर में झनकारो
जीवन के इन तारों को ।
जो राग जगाते मेरे प्राणों में
बजा न अब तक चरम तान में
निष्ठुर मूर्च्छना में है पड़ा वह
गान से मूरत को संचारो ।
बजे न उस पर केवल
कोमल करुणा
मृदु सुर से व्यर्थ करो न
इन प्राणों को ।
जल उठें सकल हुताश
गरज पड़ें सकल वातास
जगाकर सकल आकाश
पूर्णता का विस्तार करो ।
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