एकाकी अब मैं नहीं लौटूँगा
ऐसे ही--
निज मन के कोने–कोने में
मोह के घर में ।
तुम्हें अकेले बाहुपाश में जकड़
घेरा छोटा करते पाया
केवल खद को ही है बाँधा
अपने बंधन में ।
जब मैं पाऊँगा तुमको
निखिल मध्य में
उसी क्षण हृदय में पाऊँगा
हृदय विराजे ।
यह चित्त मेरा वृंत केवल
उसके ऊपर विश्व–कमल
उसके ऊपर पूर्ण प्रकाश
दिखाओ मुझे ।
ऐसे ही--
निज मन के कोने–कोने में
मोह के घर में ।
तुम्हें अकेले बाहुपाश में जकड़
घेरा छोटा करते पाया
केवल खद को ही है बाँधा
अपने बंधन में ।
जब मैं पाऊँगा तुमको
निखिल मध्य में
उसी क्षण हृदय में पाऊँगा
हृदय विराजे ।
यह चित्त मेरा वृंत केवल
उसके ऊपर विश्व–कमल
उसके ऊपर पूर्ण प्रकाश
दिखाओ मुझे ।
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