इस ज्योत्स्नाभरी रात में जागे मेरे प्राण
जगह मिलेगी क्या आज तुम्हारे पास
देख पाऊँगा मुख वह अपूर्व
रहेगा सर्वदा हृदय उत्सुक
बार–बार चरणों के गिर्द
घूमेंगे मेरे अश्रुभरे गान ?
साहस कर तुम्हारे पद–मूल में
नहीं कर पा रहा ख़ुद को समर्पित
खड़ा हूँ नजरें गड़ाए माटी में
कहीं लौटा न दो यह मेरा दान ?
यदि तुम मेरा हाथ पकड़कर
पास आ, मुझे उठ जाने को बोलो
तभी प्राणों की असीम दरिद्रता का
इसी क्षण हो जाएगा अवसान ।
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