अपने एकाकी घर की दीवार तोड़
विशाल भवसागर
प्राण–रथ के सहारे
करूँगा पार कब ।
प्रबल प्रेम में सबके बीच
जुटा हुआ सबके कामों में
हाट–बाट में चलते–चलते
संग तुम्हारे होगा मिलन ।
प्राण–रथ के सहारे
करूँगा पार कब ।
निखिल आशा–आकांक्षा युक्त
दुख में, सुख में
झाँपी दे उसकी तरंगों को
रखूँ हृदय में ।
मंद–मधुर आघात–वेग में
हृदय तुम्हारा जाग उठेगा
सुनूँगा वाणी विश्वजन के
कलरव में ।
करूँगा पार कब
प्राण–रथ के सहारे ।
विशाल भवसागर
प्राण–रथ के सहारे
करूँगा पार कब ।
प्रबल प्रेम में सबके बीच
जुटा हुआ सबके कामों में
हाट–बाट में चलते–चलते
संग तुम्हारे होगा मिलन ।
प्राण–रथ के सहारे
करूँगा पार कब ।
निखिल आशा–आकांक्षा युक्त
दुख में, सुख में
झाँपी दे उसकी तरंगों को
रखूँ हृदय में ।
मंद–मधुर आघात–वेग में
हृदय तुम्हारा जाग उठेगा
सुनूँगा वाणी विश्वजन के
कलरव में ।
करूँगा पार कब
प्राण–रथ के सहारे ।
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