पढि़ए प्रतिदिन : एक नया गीत

Tuesday, May 21, 2019

गीत 84 : आमार एकला घरेर आड़ाल भेङे

अपने एकाकी घर की दीवार तोड़
विशाल भवसागर
प्राण–रथ के सहारे
करूँगा पार कब ।
प्रबल प्रेम में सबके बीच
जुटा हुआ सबके कामों में
हाट–बाट में चलते–चलते
संग तुम्हारे होगा मिलन ।
प्राण–रथ के सहारे
करूँगा पार कब ।

निखिल आशा–आकांक्षा युक्त
दुख में, सुख में
झाँपी दे उसकी तरंगों को
रखूँ हृदय में ।
मंद–मधुर आघात–वेग में
हृदय तुम्हारा जाग उठेगा
सुनूँगा वाणी विश्वजन के
कलरव में ।
करूँगा पार कब 
प्राण–रथ के सहारे ।

No comments:

Post a Comment