पढि़ए प्रतिदिन : एक नया गीत

Wednesday, June 15, 2011

गीत 58 : जीवन जखन शुकाये जाय

जीवन जब लगे सूखने
करुणा-धारा बनकर आओ।
सकल माधुर्य लगे छिपने,
गीत-सुधा-रस बरसाओ।

कर्म जब लेकर प्रबल आकार
गरजकर ढक ले चार दिशाऍं
हृदय-प्रांत में, हे नीरव नाथ,
दबे पॉंव आ जाओ।

स्‍वयं को जब बनाकर कृपण
कोने में पड़ा रहे दीन-हीन मन
द्वार खोलकर, हे उदार-मन,
राजसी ठाठ से आओ।

वासना जब विपुल धूल से
अंधा बना अबोध को छले
अरे ओ पवित्र, अरे ओ अनिद्र
प्रचंड प्रकाश बन आओ।

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