विश्व जब निद्रा-मग्न
गगन में अंधकार,
कौन देता मेरी वीणा के तारों में
ऐसी झनकार।
नयनों से नींद छीन ली
उठ बैठी छोड़कर शयन
ऑंख मलकर देखूँ खोजूँ
पाऊँ न उनके दर्शन।
गुंजन से गुंजरित होकर
प्राण हुए भरपूर
न जाने कौन-सी विपुल वाणी
गूँजती व्याकुल सुर में।
समझ न पाती किस वेदना से
भरे दिल से ले अश्रुभार
किसे चाहती पहना देना
अपने गले का हार।
गगन में अंधकार,
कौन देता मेरी वीणा के तारों में
ऐसी झनकार।
नयनों से नींद छीन ली
उठ बैठी छोड़कर शयन
ऑंख मलकर देखूँ खोजूँ
पाऊँ न उनके दर्शन।
गुंजन से गुंजरित होकर
प्राण हुए भरपूर
न जाने कौन-सी विपुल वाणी
गूँजती व्याकुल सुर में।
समझ न पाती किस वेदना से
भरे दिल से ले अश्रुभार
किसे चाहती पहना देना
अपने गले का हार।
No comments:
Post a Comment