पढि़ए प्रतिदिन : एक नया गीत

Monday, April 22, 2019

गीत 69 : ओइ रे तरी दिलो खुले

अरे रे,  खोल दी उसने नाव।
कौन उठाएगा तेरा भार।

आगे ही जब जाना है रे
रहने दे, पिछला पड़ा ही पीछे-
यदि उसे भी पीठ पर ढोने चला,
अकेला पड़ा रह जाएगा किनारे।

घर का बोझा खींच-खींचकर
पार-घाट रखा ले आकर
तभी तो तुझको बारंबार
लौटना पड़ा-यह भूल गया

पुकार रे, माझी को फिर बुला
तेरा बोझ बहता है, बह जाने दे।
इस जीवन को उजाड़कर
समर्पित कर उसके चरण-मूल में।

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