अरे रे, खोल दी उसने नाव।
कौन उठाएगा तेरा भार।
आगे ही जब जाना है रे
रहने दे, पिछला पड़ा ही पीछे-
यदि उसे भी पीठ पर ढोने चला,
अकेला पड़ा रह जाएगा किनारे।
घर का बोझा खींच-खींचकर
पार-घाट रखा ले आकर
तभी तो तुझको बारंबार
लौटना पड़ा-यह भूल गया
पुकार रे, माझी को फिर बुला
तेरा बोझ बहता है, बह जाने दे।
इस जीवन को उजाड़कर
समर्पित कर उसके चरण-मूल में।
कौन उठाएगा तेरा भार।
आगे ही जब जाना है रे
रहने दे, पिछला पड़ा ही पीछे-
यदि उसे भी पीठ पर ढोने चला,
अकेला पड़ा रह जाएगा किनारे।
घर का बोझा खींच-खींचकर
पार-घाट रखा ले आकर
तभी तो तुझको बारंबार
लौटना पड़ा-यह भूल गया
पुकार रे, माझी को फिर बुला
तेरा बोझ बहता है, बह जाने दे।
इस जीवन को उजाड़कर
समर्पित कर उसके चरण-मूल में।
No comments:
Post a Comment