पढि़ए प्रतिदिन : एक नया गीत

Tuesday, April 23, 2019

गीत 70 : चित्त आमार हारालो आज

खोया आज चित्त मेरा  
मेघों के मध्य, 
भागा जा रहा वह किधर 
कौन जाने किधर।

बार-बार उसकी वीणा के तारों पर  
बिजली करती आघात
हृदय मध्य बज रहा वज्र 
कैसी है यह महातान।

पुंज-पुंज, भार-भार में 
निबिड़ नीले अंधकार में 
लिपट गया अंगों से मेरे,
बिखर गया प्राणों में।

नृत्य में मत्त पगली हवा 
बनी है मेरी संगी-साथी
अट्टहास भर दौड़ी किधर वह-
वर्जना नहीं मानती

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