खोया आज चित्त मेरा
मेघों के मध्य,
भागा जा रहा वह किधर
कौन जाने किधर।
बार-बार उसकी वीणा के तारों पर
बिजली करती आघात
हृदय मध्य बज रहा वज्र
कैसी है यह महातान।
पुंज-पुंज, भार-भार में
निबिड़ नीले अंधकार में
लिपट गया अंगों से मेरे,
बिखर गया प्राणों में।
नृत्य में मत्त पगली हवा
बनी है मेरी संगी-साथी
अट्टहास भर दौड़ी किधर वह-
वर्जना नहीं मानती
मेघों के मध्य,
भागा जा रहा वह किधर
कौन जाने किधर।
बार-बार उसकी वीणा के तारों पर
बिजली करती आघात
हृदय मध्य बज रहा वज्र
कैसी है यह महातान।
पुंज-पुंज, भार-भार में
निबिड़ नीले अंधकार में
लिपट गया अंगों से मेरे,
बिखर गया प्राणों में।
नृत्य में मत्त पगली हवा
बनी है मेरी संगी-साथी
अट्टहास भर दौड़ी किधर वह-
वर्जना नहीं मानती
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