चिर जन्म की वेदना,
अरे, चिर जन्म की साधना,
धधक कर जले तुम्हारी आग
कहकर दुर्बल कृपा न करना
हो जितना भी ताप, चाहूँँ सहना
जलकर खाक हो जाए वासना।
पुकार जो अमोघ, करो वही पुकार
अब कोई देरी क्यों इसमें?
जो बंधन छाती से है जड़ा
वह छिन्न-भिन्न पड़ जाए पीछे
गरज-गरज कर शंख तुम्हारा
बज उठे जोर से इस बार
छूटे गर्व और निद्रा टूटे
जागे तीव्र चेतना।
अरे, चिर जन्म की साधना,
धधक कर जले तुम्हारी आग
कहकर दुर्बल कृपा न करना
हो जितना भी ताप, चाहूँँ सहना
जलकर खाक हो जाए वासना।
पुकार जो अमोघ, करो वही पुकार
अब कोई देरी क्यों इसमें?
जो बंधन छाती से है जड़ा
वह छिन्न-भिन्न पड़ जाए पीछे
गरज-गरज कर शंख तुम्हारा
बज उठे जोर से इस बार
छूटे गर्व और निद्रा टूटे
जागे तीव्र चेतना।
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