सभा जब खत्म होगी तब
अंतिम गान क्या गा पाऊँँगी
हो सकता तब बोल न फूटेंं
मुख निहारती रह जाऊँँगी।
अभी भी सुर सध न पाए
बज पाएगी क्या वह रागिनी
सुनहरी तान में क्या प्रेम-व्यथा
सांध्य गगन में बिखर पाएगी।
इतने दिन साधा जो सुर
रात-दिन हरेक क्षण में।
यदि भाग्यवश साधना
समाप्त हो सके इसी जीवन में--
इस जीवन की पूर्ण वाणी
मानस वन के सभी कमल
उत्सर्ग करूँँ सागर जल में
विश्वगान की बहती धारा में।
अंतिम गान क्या गा पाऊँँगी
हो सकता तब बोल न फूटेंं
मुख निहारती रह जाऊँँगी।
अभी भी सुर सध न पाए
बज पाएगी क्या वह रागिनी
सुनहरी तान में क्या प्रेम-व्यथा
सांध्य गगन में बिखर पाएगी।
इतने दिन साधा जो सुर
रात-दिन हरेक क्षण में।
यदि भाग्यवश साधना
समाप्त हो सके इसी जीवन में--
इस जीवन की पूर्ण वाणी
मानस वन के सभी कमल
उत्सर्ग करूँँ सागर जल में
विश्वगान की बहती धारा में।
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