पढि़ए प्रतिदिन : एक नया गीत

Wednesday, April 24, 2019

गीत 71 : ओगो मौन, ना जदि कओ

अरे ओ मौन, यदि न बोलो 
करो न कोई बात।
हृदय में भरकर वहन करूँँगा 
तुम्हारी नीरवता।

स्तब्ध होकर पड़ा रहूँगा
रजनी रहती जिस प्रकार 
जलाकर तारे निर्निमेष 
धैर्य धारे अवनता।

होगा-होगा, होगा प्रभात
छँट जाएगा अँँधेरा। 
आएगी आकाश फाड़कर 
तुम्हारी वाणी स्वर्णधारा।

तब घोंसले में पाखी के मेरे 
तुम्हारी भाषा में होगा गान 
खिलाएगी फूल तुम्हारी तान से 
मेरी वनलता।

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