अरे ओ मौन, यदि न बोलो
करो न कोई बात।
हृदय में भरकर वहन करूँँगा
तुम्हारी नीरवता।
स्तब्ध होकर पड़ा रहूँगा
रजनी रहती जिस प्रकार
जलाकर तारे निर्निमेष
धैर्य धारे अवनता।
होगा-होगा, होगा प्रभात
छँट जाएगा अँँधेरा।
आएगी आकाश फाड़कर
तुम्हारी वाणी स्वर्णधारा।
तब घोंसले में पाखी के मेरे
तुम्हारी भाषा में होगा गान
खिलाएगी फूल तुम्हारी तान से
मेरी वनलता।
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