आज बरस रहा पानी झर-झर
भरी बदरी से।
आकाश फोड़कर आकुल धारा
कहीं न ठहरे।
ठहर-ठहरकर शाल वनों में
आँधी चली भर हुँकारे,
झूम-झूमकर पानी बरसे
मैदानों में।
आज मेघ-जटाएँ लहराकर
नाच रहा है कौन।
अरे वर्षा पर मोहित मेरा मन,
हुआ निछावर झंझा पर,
उमड़कर हृदय से तरंग मेरी
जा पड़े किसके चरणों पर ।
अंतर में आज कैसा कोलाहल,
तोड़कर द्वारों की अर्गलाएँ
जाग गया अंतर का पागल
इस भादो में।
आज ऐसे कौन हुआ उन्मत्त
बाहर और घर में।
भरी बदरी से।
आकाश फोड़कर आकुल धारा
कहीं न ठहरे।
ठहर-ठहरकर शाल वनों में
आँधी चली भर हुँकारे,
झूम-झूमकर पानी बरसे
मैदानों में।
आज मेघ-जटाएँ लहराकर
नाच रहा है कौन।
अरे वर्षा पर मोहित मेरा मन,
हुआ निछावर झंझा पर,
उमड़कर हृदय से तरंग मेरी
जा पड़े किसके चरणों पर ।
अंतर में आज कैसा कोलाहल,
तोड़कर द्वारों की अर्गलाएँ
जाग गया अंतर का पागल
इस भादो में।
आज ऐसे कौन हुआ उन्मत्त
बाहर और घर में।
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