रात्रि स्वप्न टूट गया रे
टूट गया रे।
छूटा बंधन छूट गया रे।
प्राणों पर अब रहा न परदा,
जगत-जंजाल से बाहर आए,
हृदय शतदल की पंखुड़ियाँ सब
अब खिल गईं रे
खिल गईं रे।
अंततः तोड़कर द्वार मेरा
जैसे ही सम्मुख खड़े हुए
आँसुओं में डूबा हृदय
चरण-तलों में लोट गया रे।
आकाश से प्रभात-किरणों ने
बढ़ाए हाथ मेरी ओर,
मेरी कारा के टूटे द्वार से
जय ध्वनि फूट चली रे
फूट चली रे।
टूट गया रे।
छूटा बंधन छूट गया रे।
प्राणों पर अब रहा न परदा,
जगत-जंजाल से बाहर आए,
हृदय शतदल की पंखुड़ियाँ सब
अब खिल गईं रे
खिल गईं रे।
अंततः तोड़कर द्वार मेरा
जैसे ही सम्मुख खड़े हुए
आँसुओं में डूबा हृदय
चरण-तलों में लोट गया रे।
आकाश से प्रभात-किरणों ने
बढ़ाए हाथ मेरी ओर,
मेरी कारा के टूटे द्वार से
जय ध्वनि फूट चली रे
फूट चली रे।
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