पढि़ए प्रतिदिन : एक नया गीत

Tuesday, August 17, 2010

गीत 31 : आमि हेथाय थाकि शुधु

मैं यहाँ ठहरी हूँ बस
गाने को तुम्हारे गान,
दे दो अपनी जगत सभा में
मुझको भी थोड़ा स्थान।

मैं तुम्हारे इस भुवन में
हे नाथ, किसी काम न आई,
बस केवल सुर में बजते रहे
निरर्थक ही ये प्राण।

रात में, नीरव मंदिर में
जब हो तुम्हारा आराधन।
मुझको दो आदेश
गाने का हे राजन।

सुबह जब आकाश हो गूँजित
स्वर्ण वीणा के सुरों में
रह न जाऊँ मैं उनसे वंचित
इतना देना मुझको मान।

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