आओ हे आओ सजल घन,
बरसने को बादल-
आओ हे लेकर इस जीवन में
विपुल अपना स्नेह श्यामल।
आओ हे गिरि-शिखर चूमकर
छाया बन जंगल-धरा पर-
आओ हे तुम गगन में छाकर
करते हुए घोर गर्जन।
व्यथित हो उठे कदंब के वन
पुलकित हैं फूल।
उछल रहे करते कल-रोदन
नदियों के सब कूल।
आओ हे आओ हृदयविहारी,
आओ हे आओ तृष्णाहारी,
आओ हे नयन-सुखकारी,
आन बसो मेरे मन।
बांग्ला भाषा में गीत-संग्रह 'गीतांजलि' के रचयिता विश्वप्रतिष्ठ कवि, कथाकार, नाटककार, शिक्षाशास्त्री, विचारक और चित्रकार रवीन्द्रनाथ ठाकुर हैं। इसका प्रथम प्रकाशन 1910 ई. के सितंबर महीने में इंडियन पब्लिकेशन हाउस, कोलकाता द्वारा किया गया था। स्वयं कवि द्वारा अंग्रेजी गद्य में रूपांतरित इस कृति को 1913 ई. के नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। यहॉं बांग्ला 'गीतांजलि' के गीतों के हिन्दी अनुवाद की क्रमवार प्रस्तुति की जा रही है। ये अनुवाद देवेन्द्र कुमार देवेश द्वारा किए गए हैं।
पढि़ए प्रतिदिन : एक नया गीत
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