पढि़ए प्रतिदिन : एक नया गीत

Tuesday, August 24, 2010

गीत 35 : एसो हे, एसो, सजल घन

आओ हे आओ सजल घन,
बरसने को बादल-
आओ हे लेकर इस जीवन में
विपुल अपना स्नेह श्यामल।

आओ हे गिरि-शिखर चूमकर
छाया बन जंगल-धरा पर-
आओ हे तुम गगन में छाकर
करते हुए घोर गर्जन।

व्यथित हो उठे कदंब के वन
पुलकित हैं फूल।
उछल रहे करते कल-रोदन
नदियों के सब कूल।

आओ हे आओ हृदयविहारी,
आओ हे आओ तृष्णाहारी,
आओ हे नयन-सुखकारी,
आन बसो मेरे मन।

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