मेरे मिलन के लिए तुम
हो कब से ही आ रहे।
कहाँ रखेंगे ढँककर तुमको
चंद्र-सूर्य तुम्हारे।
कितनी ही बार साँझ-सकारे
तुम्हारी पगचाप सुनाई पड़े।
दूत चुपके से अंतरतर में
गया है मुझको बुलाके।
अरे ओ पथिक, आज तो मेरे
प्राणों में है स्पंदन
रह-रहकर उठती है देखो
हर्ष की सिहरन।
देखो समय आ गया आज,
खत्म हुए सब मेरे काज-
हवा आ रही हे महाराज,
तुम्हारी गंध लेके।
बांग्ला भाषा में गीत-संग्रह 'गीतांजलि' के रचयिता विश्वप्रतिष्ठ कवि, कथाकार, नाटककार, शिक्षाशास्त्री, विचारक और चित्रकार रवीन्द्रनाथ ठाकुर हैं। इसका प्रथम प्रकाशन 1910 ई. के सितंबर महीने में इंडियन पब्लिकेशन हाउस, कोलकाता द्वारा किया गया था। स्वयं कवि द्वारा अंग्रेजी गद्य में रूपांतरित इस कृति को 1913 ई. के नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। यहॉं बांग्ला 'गीतांजलि' के गीतों के हिन्दी अनुवाद की क्रमवार प्रस्तुति की जा रही है। ये अनुवाद देवेन्द्र कुमार देवेश द्वारा किए गए हैं।
पढि़ए प्रतिदिन : एक नया गीत
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