हे, मेरे भय को नष्ट करो।
मुख अपना मेरी ओर करो।
रहकर पास नहीं पहचाना,
जाने किधर क्या रहा देखता,
तुम्हीं हो मेरे हृदयविहारी,
सस्मित आकर हृदय विराजो।
करो मुझसे कुछ बात करो,
मेरी काया का परस करो।
बढ़ाओ अपना हाथ दाहिना
मुझे थामकर तुम उबार लो।
जो भी समझूँ, सब गलत लगे,
जो भी खोजूँ, सब गलत लगे-
हँसना मिथ्या, रोना मिथ्या
दर्शन देकर भ्रम दूर करो।
बांग्ला भाषा में गीत-संग्रह 'गीतांजलि' के रचयिता विश्वप्रतिष्ठ कवि, कथाकार, नाटककार, शिक्षाशास्त्री, विचारक और चित्रकार रवीन्द्रनाथ ठाकुर हैं। इसका प्रथम प्रकाशन 1910 ई. के सितंबर महीने में इंडियन पब्लिकेशन हाउस, कोलकाता द्वारा किया गया था। स्वयं कवि द्वारा अंग्रेजी गद्य में रूपांतरित इस कृति को 1913 ई. के नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। यहॉं बांग्ला 'गीतांजलि' के गीतों के हिन्दी अनुवाद की क्रमवार प्रस्तुति की जा रही है। ये अनुवाद देवेन्द्र कुमार देवेश द्वारा किए गए हैं।
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