पढि़ए प्रतिदिन : एक नया गीत

Wednesday, August 18, 2010

गीत 32 : दाओ हे आमार भय भेंगे दाओ

हे, मेरे भय को नष्ट करो।
मुख अपना मेरी ओर करो।

रहकर पास नहीं पहचाना,
जाने किधर क्या रहा देखता,
तुम्हीं हो मेरे हृदयविहारी,
सस्मित आकर हृदय विराजो।

करो मुझसे कुछ बात करो,
मेरी काया का परस करो।
बढ़ाओ अपना हाथ दाहिना
मुझे थामकर तुम उबार लो।

जो भी समझूँ, सब गलत लगे,
जो भी खोजूँ, सब गलत लगे-
हँसना मिथ्या, रोना मिथ्या
दर्शन देकर भ्रम दूर करो।

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