मेरे तन में पुलक जगी है,
आँखों में हुई घनघोर-
हृदय में मेरे किसने बाँधी
राखी की रंगीन डोर।
आज इस आकाश के नीचे
जल में, थल में, फूल में, फल में
किस प्रकार हे मनोहरण,
छितराया मेरा मन।
कैसा खेल हुआ है मेरा
आज तुम्हारे संग में।
पाया है क्या खोज-भटककर
सोच न पाऊँ मन में।
आनंद आज कैसे किस ढब से
आँसू छलकाए आँखों में,
मृदु-मधुर बनकर विरह आज
कर गया प्राणों को विभोर।
बांग्ला भाषा में गीत-संग्रह 'गीतांजलि' के रचयिता विश्वप्रतिष्ठ कवि, कथाकार, नाटककार, शिक्षाशास्त्री, विचारक और चित्रकार रवीन्द्रनाथ ठाकुर हैं। इसका प्रथम प्रकाशन 1910 ई. के सितंबर महीने में इंडियन पब्लिकेशन हाउस, कोलकाता द्वारा किया गया था। स्वयं कवि द्वारा अंग्रेजी गद्य में रूपांतरित इस कृति को 1913 ई. के नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। यहॉं बांग्ला 'गीतांजलि' के गीतों के हिन्दी अनुवाद की क्रमवार प्रस्तुति की जा रही है। ये अनुवाद देवेन्द्र कुमार देवेश द्वारा किए गए हैं।
पढि़ए प्रतिदिन : एक नया गीत
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