जगत के आनंद-यज्ञ में मिला निमंत्रण।
धन्य हुआ, धन्य हुआ, मेरा मानव-जीवन।
रूपनगर में नयन मेरे
घूम-घूमकर साध मिटाते,
कान मेरे गहन सुरों में
हुए हैं मगन।
अपने यज्ञ में तुमने भार दिया है
मैं बजाऊँ वंशी।
पिरोकर गान-गान में घूमूँ
रुदन-हँसी प्राणों की।
अब घड़ी आ गई है क्या?
सभा में जाकर तुमको देखूँ
‘जयध्वनि’ करता जाऊँ,
है मेरा यही निवेदन।
धन्य हुआ, धन्य हुआ, मेरा मानव-जीवन।
रूपनगर में नयन मेरे
घूम-घूमकर साध मिटाते,
कान मेरे गहन सुरों में
हुए हैं मगन।
अपने यज्ञ में तुमने भार दिया है
मैं बजाऊँ वंशी।
पिरोकर गान-गान में घूमूँ
रुदन-हँसी प्राणों की।
अब घड़ी आ गई है क्या?
सभा में जाकर तुमको देखूँ
‘जयध्वनि’ करता जाऊँ,
है मेरा यही निवेदन।
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