आज सुगंधियुक्त समीरण में
किसे खोजते भटकूँ वन-वन में।
आज क्षुब्ध नीलाकाश में
कैसा यह चंचल क्रंदन गूँजे।
सुदूर दिगंतर में सकरुण संगीत
कर रहा विचलित मुझे-
मैं खोजूँ किसे अंतर में, मन में
सुगंधियुक्त समीरण में।
ओ रे जानूँ कि नंदन राग में
सुख में उत्सुक यौवन जागे।
आज आम्र मुकुल-सुगंध में
नव पल्लव-मर्मर-छंद में
चंद्र-किरण-सुधा-सिंचित अंबर में
अश्रु-सरस महानंद में
मैं पुलकित किसकी छुअन में
सुगंधियुक्त समीरण में।
बांग्ला भाषा में गीत-संग्रह 'गीतांजलि' के रचयिता विश्वप्रतिष्ठ कवि, कथाकार, नाटककार, शिक्षाशास्त्री, विचारक और चित्रकार रवीन्द्रनाथ ठाकुर हैं। इसका प्रथम प्रकाशन 1910 ई. के सितंबर महीने में इंडियन पब्लिकेशन हाउस, कोलकाता द्वारा किया गया था। स्वयं कवि द्वारा अंग्रेजी गद्य में रूपांतरित इस कृति को 1913 ई. के नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। यहॉं बांग्ला 'गीतांजलि' के गीतों के हिन्दी अनुवाद की क्रमवार प्रस्तुति की जा रही है। ये अनुवाद देवेन्द्र कुमार देवेश द्वारा किए गए हैं।
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