पढि़ए प्रतिदिन : एक नया गीत

Thursday, September 9, 2010

गीत 45 : आलोय आलोकमय करे हे

आलोक से करते हुए आलोकित
आए आलोकों के आलोक।
मेरे नयनों से अंधकार
दूर हुआ, हाँ दूर हुआ।

सकल आकाश, सकल धरा
आनंद-उल्लास से परिपूरित,
जिधर भी मैं देख जहाँ तक पाऊँ
सबकुछ है कितना अच्छा।

पेड़ों के पत्तों में आलोक तुम्हारा
नाचकर भरता प्राण।
पहुँचकर घोंसलों में चिड़ियों के
जगाकर करता गान।

स्नेहिल यह आलोक तुम्हारा
पड़ता आकर गात पर मेरे,
निर्मल हाथों हृदय को मेरे
सहला रहा, सहला रहा।

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