आसन तले माटी में ही रहूँगी लोटती।
होऊँगी धूल-धूसरित चरण-धूलि में तुम्हारी।
क्यों मुझको देकर मान, रखते हो इतनी दूर,
जनम-जनम तक ऐसे ही, रखना नहीं भुलाए,
जैसे-तैसे पकड़कर-खींचकर डालो अपने पैरों में।
होऊँगी धूल-धूसरित चरण-धूलि में तुम्हारी।
मैं तुम्हारे यात्राी दल में रहूँगी पीछे
मुझको देना स्थान, तुम सबसे नीचे।
कितने ही लोग दौड़े आते पाने को प्रसाद,
मुझे न कुछ भी चाहिए, बस रहूँ पास-
सबके अंत में जो भी बचे, बस लूँगी वही।
होऊँगी धूल-धूसरित चरण-धूलि में तुम्हारी।
बांग्ला भाषा में गीत-संग्रह 'गीतांजलि' के रचयिता विश्वप्रतिष्ठ कवि, कथाकार, नाटककार, शिक्षाशास्त्री, विचारक और चित्रकार रवीन्द्रनाथ ठाकुर हैं। इसका प्रथम प्रकाशन 1910 ई. के सितंबर महीने में इंडियन पब्लिकेशन हाउस, कोलकाता द्वारा किया गया था। स्वयं कवि द्वारा अंग्रेजी गद्य में रूपांतरित इस कृति को 1913 ई. के नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। यहॉं बांग्ला 'गीतांजलि' के गीतों के हिन्दी अनुवाद की क्रमवार प्रस्तुति की जा रही है। ये अनुवाद देवेन्द्र कुमार देवेश द्वारा किए गए हैं।
पढि़ए प्रतिदिन : एक नया गीत
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