किस प्रकाश से प्राण-प्रदीप
जलाकर तुम धरा पर आते-
ओ रे साधक, ओ रे प्रेमी,
ओ रे पागल, धरा पर आते।
इस अकूल संसार में
दुःख-आघात तुम्हारी प्राणवीणा की झंकार में।
घोर विपदा-बीच भी,
किस जननी के मुख की हँसी देखकर हँसते।
तुम हो किसके संधान में
सकल सुखों में आग लगाकर घूम रहे, कोई न जाने।
इस तरह आकुल-व्याकुल कर
कौन रुलाए तुम्हें, जिसे तुम प्यार हो करते।
तुम्हारी कोई चिन्ता नहीं-
कौन तुम्हारा संगी-साथी, यही सोचती मन में।
मृत्यु को भूलकर तुम
किस अनंत प्राण-सागर में आनंदित हो तिरते।
बांग्ला भाषा में गीत-संग्रह 'गीतांजलि' के रचयिता विश्वप्रतिष्ठ कवि, कथाकार, नाटककार, शिक्षाशास्त्री, विचारक और चित्रकार रवीन्द्रनाथ ठाकुर हैं। इसका प्रथम प्रकाशन 1910 ई. के सितंबर महीने में इंडियन पब्लिकेशन हाउस, कोलकाता द्वारा किया गया था। स्वयं कवि द्वारा अंग्रेजी गद्य में रूपांतरित इस कृति को 1913 ई. के नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। यहॉं बांग्ला 'गीतांजलि' के गीतों के हिन्दी अनुवाद की क्रमवार प्रस्तुति की जा रही है। ये अनुवाद देवेन्द्र कुमार देवेश द्वारा किए गए हैं।
पढि़ए प्रतिदिन : एक नया गीत
Kya Apne Rabindranath ji ki getanjali me Shamil Kavita Kashmir Nadi shunya terre ka hindi ke anuwaad nhi Kiya.. BaLjeet Singh 9829875517
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