अमल धवल पाल से लगती
मंद-मधुर हवा।
देखी नहीं, कभी ना देखी
तिरते ऐसे नइया।
किस सागर के पार से लाती
सुदूर पड़ा कौन-सा धन।
मन भी चाहे बहते जाना,
छोड़ते जाना इसी किनारे
जो भी सब चाहा-पाया।
पीछे लगी है जल की झड़ी
घोर गर्जना करते मेघ,
चेहरे पर पड़ती अरुण किरण
जब फट जाते मेघ।
अरे ओ कर्णधार, कौन हो तुम,
किसकी खुशी-रूलाई का धन।
सोच-सोच विचलित मेरा मन,
किस सुर में आज सजेंगे साज
किस मंत्र का होगा गान।
मंद-मधुर हवा।
देखी नहीं, कभी ना देखी
तिरते ऐसे नइया।
किस सागर के पार से लाती
सुदूर पड़ा कौन-सा धन।
मन भी चाहे बहते जाना,
छोड़ते जाना इसी किनारे
जो भी सब चाहा-पाया।
पीछे लगी है जल की झड़ी
घोर गर्जना करते मेघ,
चेहरे पर पड़ती अरुण किरण
जब फट जाते मेघ।
अरे ओ कर्णधार, कौन हो तुम,
किसकी खुशी-रूलाई का धन।
सोच-सोच विचलित मेरा मन,
किस सुर में आज सजेंगे साज
किस मंत्र का होगा गान।
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