पढि़ए प्रतिदिन : एक नया गीत

Tuesday, July 13, 2010

गीत 6 : प्रेमे प्राणे गाने गंधे आलोके पुलके

प्रेम, प्राण, गीत, गंध, आलोक और पुलक में
हो रहा प्लावित निखिल द्युलोक और भूलोक में
बरस रहा झर-झर तुम्हारा अमल अमृत।

दिशा-दिशा में टूटे सारे आज बंध
मूर्तिमान हो जाग उठा आनंद
जीवन हो उठा जीवंत कि पाया छककर अमृत।

कल्याण-रस-सरसिज में चेतना मेरी
परमानंदित हो खिल उठी शतदल-सी
निज मधु सारा तेरे चरणों में किया समर्पण।

उदार उषा के अरुणोदय की कांति जब
नीरव आलोक में, जागी उर-प्रांतर में
हट गए अलसाई आँखों के आवरण।

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