आनंद-रूपी सागर में
उठा है आज ज्वार।
खींचो-खींचो मिलकर सभी
आज बैठ थामो पतवार।
हो चाहे जितना भी बोझ
पार करेंगे दुःख की नइया,
लहरों से भी जूझेंगे हम
उड़े भले ही प्राण चिरइया।
आनंद-रूपी सागर में
उठा है आज ज्वार।
कौन पुकारता पीछे से रे,
कौन करता है मना,
कर रहा कौन भयभीत आज
भय तो है जाना-पहचाना।
किस शाप, किस ग्रह दोष से
बैठेंगे हम सुख के बालूचर पर,
पाल की रस्सी कसकर पकड़े
चलेंगे गाते-गाते गान।
आनंद-रूपी सागर में
उठा है आज ज्वार।
बांग्ला भाषा में गीत-संग्रह 'गीतांजलि' के रचयिता विश्वप्रतिष्ठ कवि, कथाकार, नाटककार, शिक्षाशास्त्री, विचारक और चित्रकार रवीन्द्रनाथ ठाकुर हैं। इसका प्रथम प्रकाशन 1910 ई. के सितंबर महीने में इंडियन पब्लिकेशन हाउस, कोलकाता द्वारा किया गया था। स्वयं कवि द्वारा अंग्रेजी गद्य में रूपांतरित इस कृति को 1913 ई. के नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। यहॉं बांग्ला 'गीतांजलि' के गीतों के हिन्दी अनुवाद की क्रमवार प्रस्तुति की जा रही है। ये अनुवाद देवेन्द्र कुमार देवेश द्वारा किए गए हैं।
पढि़ए प्रतिदिन : एक नया गीत
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