पढि़ए प्रतिदिन : एक नया गीत

Friday, July 16, 2010

गीत 9 : आनंदरेइ सागर थेके

आनंद-रूपी सागर में
उठा है आज ज्वार।
खींचो-खींचो मिलकर सभी
आज बैठ थामो पतवार।

हो चाहे जितना भी बोझ
पार करेंगे दुःख की नइया,
लहरों से भी जूझेंगे हम
उड़े भले ही प्राण चिरइया।
आनंद-रूपी सागर में
उठा है आज ज्वार।

कौन पुकारता पीछे से रे,
कौन करता है मना,
कर रहा कौन भयभीत आज
भय तो है जाना-पहचाना।

किस शाप, किस ग्रह दोष से
बैठेंगे हम सुख के बालूचर पर,
पाल की रस्सी कसकर पकड़े
चलेंगे गाते-गाते गान।
आनंद-रूपी सागर में
उठा है आज ज्वार।

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