तुम्हारे स्वर्ण-थाल में सजाऊँगा आज
दुःखों की अश्रुधार।
हे माते, गूँथूँगा मैं तुम्हारे
गले का मुक्ताहार।
चरणों से लिपटे हैं
चंद्र-सूर्य बनकर माला,
तुम्हारी छाती पर शोभित मेरे
दुःखों के अलंकार।
धन-धान्य तो सब तेरे ही,
क्या करना है, यह तो बोलो।
देना चाहो तो दे दो मुझको
लेना चाहो तो वापस लो।
दुःख तो मेरे घर की खेती,
असली रत्न, तुझे पहचान-
अपनी कृपा के बदले तू खरीदती
है इसका मुझको अहंकार।
दुःखों की अश्रुधार।
हे माते, गूँथूँगा मैं तुम्हारे
गले का मुक्ताहार।
चरणों से लिपटे हैं
चंद्र-सूर्य बनकर माला,
तुम्हारी छाती पर शोभित मेरे
दुःखों के अलंकार।
धन-धान्य तो सब तेरे ही,
क्या करना है, यह तो बोलो।
देना चाहो तो दे दो मुझको
लेना चाहो तो वापस लो।
दुःख तो मेरे घर की खेती,
असली रत्न, तुझे पहचान-
अपनी कृपा के बदले तू खरीदती
है इसका मुझको अहंकार।
No comments:
Post a Comment