पढि़ए प्रतिदिन : एक नया गीत

Thursday, July 15, 2010

गीत 8 : आज धानेर खेते रौद्र छायाय

आज धान के खेत में धूप-छाँव
खेलें खेल लुकाछिपी का।
नीले आकाश में किसने खोली
श्वेत मेघ की नौका।

आज भौंरे भूल गए मधु पीना
उड़ रहे प्रकाश के हो मतवाला,
आज किसलिए नदी तीर पर
चकवा-चकवी का लगा है मेला।

अरे आज तो मैं घर न जाऊँ भैया,
आज तो घर न जाऊँ,
अरे चीरकर आकाश को आज
मैं तो सबकुछ लुट आऊँ।

जैसे ज्वार के जल से उठता है फेन
आज की हवा में छूटती है हँसी,
आज बिताऊँगा अपना मैं सारा समय
निरुद्देश्य बजाते हुए बंशी।

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