आज धान के खेत में धूप-छाँव
खेलें खेल लुकाछिपी का।
नीले आकाश में किसने खोली
श्वेत मेघ की नौका।
आज भौंरे भूल गए मधु पीना
उड़ रहे प्रकाश के हो मतवाला,
आज किसलिए नदी तीर पर
चकवा-चकवी का लगा है मेला।
अरे आज तो मैं घर न जाऊँ भैया,
आज तो घर न जाऊँ,
अरे चीरकर आकाश को आज
मैं तो सबकुछ लुट आऊँ।
जैसे ज्वार के जल से उठता है फेन
आज की हवा में छूटती है हँसी,
आज बिताऊँगा अपना मैं सारा समय
निरुद्देश्य बजाते हुए बंशी।
बांग्ला भाषा में गीत-संग्रह 'गीतांजलि' के रचयिता विश्वप्रतिष्ठ कवि, कथाकार, नाटककार, शिक्षाशास्त्री, विचारक और चित्रकार रवीन्द्रनाथ ठाकुर हैं। इसका प्रथम प्रकाशन 1910 ई. के सितंबर महीने में इंडियन पब्लिकेशन हाउस, कोलकाता द्वारा किया गया था। स्वयं कवि द्वारा अंग्रेजी गद्य में रूपांतरित इस कृति को 1913 ई. के नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। यहॉं बांग्ला 'गीतांजलि' के गीतों के हिन्दी अनुवाद की क्रमवार प्रस्तुति की जा रही है। ये अनुवाद देवेन्द्र कुमार देवेश द्वारा किए गए हैं।
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पॉल बाबा की जादुई शक्ति के राज़।
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