पढि़ए प्रतिदिन : एक नया गीत

Thursday, July 29, 2010

गीत 22 : तुमि केमन करे गान करो जे गुणी

तुम कैसे गाते हो गान, गुणी,
अवाक् हो सुनूँ, केवल सुनूँ।

सुर का प्रकाश छाया भुवन में,
चली सुर की हवा बहती गगन में,
टूटते पाषाण व्याकुल वेग में
बहती ही जाए सुरों की सुरधुनी।

जी चाहता उसी सुर में गाऊँ।
कंठ में अपने सुर खोज न पाऊँ।

कहना जो चाहूँ, कह न पाऊँ,
पराजय मानने में प्राण मेरे रोएँ,
डाल दिया तुमने मुझे किस फंदे में
बुनकर सुरों का जाल मेरे चतुर्दिक्।

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