कितने अनजानों से तुमने कराया परिचय
कितने ही घरों में दिया आश्रय-
दिलों की दूरी घटाई, बनाया बंधु,
परायों को बनाया भाई।
जाने क्या होगा खाए यह चिंता
पुराने घर को जब छोड़कर जाती,
नूतन में तुम हो नित्य पुरातन
यह बात जो मैं भूल जाती।
दिलों की दूरी घटाई, बनाया बंधु,
परायों को बनाया भाई।
जीवन-मरण में, निखिल भुवन में
जब-जहाँ भी तुम मुझे अपनाओगे,
ओ जनम-जनम के मेरे परिचित,
सबसे तुम मुझे मिलाओगे।
तुम्हें जानकर रहे न कोई पर,
नहीं वर्जना और न कोई डर,
रहते तुम जाग्रत सबको मिलाकर-
पाया ऐसा ही तुमको देखा निरंतर।
दिलों की दूरी घटाई, बनाया बंधु,
परायों को बनाया भाई।
बांग्ला भाषा में गीत-संग्रह 'गीतांजलि' के रचयिता विश्वप्रतिष्ठ कवि, कथाकार, नाटककार, शिक्षाशास्त्री, विचारक और चित्रकार रवीन्द्रनाथ ठाकुर हैं। इसका प्रथम प्रकाशन 1910 ई. के सितंबर महीने में इंडियन पब्लिकेशन हाउस, कोलकाता द्वारा किया गया था। स्वयं कवि द्वारा अंग्रेजी गद्य में रूपांतरित इस कृति को 1913 ई. के नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। यहॉं बांग्ला 'गीतांजलि' के गीतों के हिन्दी अनुवाद की क्रमवार प्रस्तुति की जा रही है। ये अनुवाद देवेन्द्र कुमार देवेश द्वारा किए गए हैं।
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