ऐसे ओट लेकर छिपने से
कैसे चलेगा।
अब बीच हृदय में बैठो छुपकर
न कोई जान पाएगा, न टोकेगा।
तुम्हारी लुकाछिपी की दुनिया में,
कितना घूमूँ देश-विदेश,
अब वचन दो मुझको नहीं छलोगे
मन के कोने में रहोगे।
ओट लेकर छिपने से
कैसे चलेगा।
जानूँ मेरा यह हृदय कठोर
तुम्हारे चरणों के नहीं योग्य
सखे पर क्या तुम्हारा परस पाकर भी
इसमें न आएगी सरसता।
नहीं है, मेरी नहीं साधना,
किंतु जो बरसे कृपा तुम्हारी।
तब निमिष में क्या फूल न खिलेंगे
और क्या फल न फलेगा।
ओट लेकर छिपने से
कैसे चलेगा।
कैसे चलेगा।
अब बीच हृदय में बैठो छुपकर
न कोई जान पाएगा, न टोकेगा।
तुम्हारी लुकाछिपी की दुनिया में,
कितना घूमूँ देश-विदेश,
अब वचन दो मुझको नहीं छलोगे
मन के कोने में रहोगे।
ओट लेकर छिपने से
कैसे चलेगा।
जानूँ मेरा यह हृदय कठोर
तुम्हारे चरणों के नहीं योग्य
सखे पर क्या तुम्हारा परस पाकर भी
इसमें न आएगी सरसता।
नहीं है, मेरी नहीं साधना,
किंतु जो बरसे कृपा तुम्हारी।
तब निमिष में क्या फूल न खिलेंगे
और क्या फल न फलेगा।
ओट लेकर छिपने से
कैसे चलेगा।
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