पढि़ए प्रतिदिन : एक नया गीत

Monday, July 12, 2010

गीत 5 : अंतर मम विकसित करो


अंंतर मेरा विकसित करो
हे अंतरतर!
निर्मल करो, उज्ज्वल करो,
करो हे सुंंदर।
जाग्रत करो उद्यत करो,
निर्भय करो हे।
मंगल करो, निरलस निःसंशय करो हे।
अंतर मेरा विकसित करो
अंतरतर हे!

जोड़ो मुझे सबके संग,
मुक्त करो बंध,
संचरित करो सब कर्मों में
अपने निर्वेद छंद।

निःस्पंदित करो चित्त मेरा अपने पद-पद्मों में
नंदित करो, नंदित करो,
नंदित करो हे।
अंंतर मेरा विकसित करो
अंतरतर हे!

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