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Wednesday, July 14, 2010

गीत 7 : तुमि नव नव रूपे एसो प्राणे

तुम नव-नव रूपों में आओ प्राणों में।
आओ गंधों में वर्णों में, आओ गानों में।

आओ अंगों के पुलकमय स्पर्श में,
आओ चित्त के अमृतमय हर्ष में,
आओ मुग्ध मुदित दो नयनों में।
तुम नव-नव रूपों में आओ प्राणों में।

आओ निर्मल उज्ज्वल कांत
आओ सुंदर स्निग्ध प्रशांत
आओ आओ तुम विचित्रा विधानों में।

आओ दुःख में, सुख में, आओ मर्म में,
आओ नित्य सब दैनिक कर्म में,
आओ सकल कर्म-अवसानों में।
तुम नव-नव रूपों में आओ प्राणों में।

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